सिनेमाई विरासत पर विशेष: विचारोत्तेजक फिल्मों के मार्गदर्शक श्याम बेनेगल

श्याम बेनेगल: समानांतर सिनेमा के जनक और सिनेमा को समर्पित जीवन का प्रतीक

श्याम बेनेगल का जाना न केवल एक महान फिल्मकार के जाने का एहसास है, बल्कि उनके साथ वह दृष्टि भी समाप्त हो गई जो ‘कलयुग’ और ‘जुबेदा’ जैसे सपनों को साकार करती थी। समानांतर सिनेमा को नई दिशा देने वाले श्याम बेनेगल ने यह दिखाया कि सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का आईना और समस्याओं पर गहरी टिप्पणी भी हो सकता है।

सिनेमा के प्रति कला का दृष्टिकोण

श्याम बेनेगल ने सिनेमा को केवल कहानियों और किरदारों का मंच नहीं माना, बल्कि उन्होंने इसे एक गहरे कलात्मक दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने सिखाया कि एक फिल्म का मूल्य उसके अभिनेताओं से नहीं, बल्कि उसके निर्देशक के दृष्टिकोण और कहानी की गहराई से आंका जाना चाहिए। उनकी हर फिल्म अपने आप में एक सोचने पर मजबूर करने वाली कृति थी।

पहली फिल्म ‘अंकुर’ से शुरुआत

श्याम बेनेगल ने अपने करियर की शुरुआत ‘अंकुर’ से की, जो उनकी पहली फिल्म थी और जिसमें शबाना आज़मी ने भी पहली बार अभिनय किया। यह फिल्म जमींदार और मजदूर वर्ग के बीच संघर्ष की कहानी थी। ‘अंकुर’ ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता और शबाना आज़मी को ‘लक्ष्मी’ के किरदार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिलाया। यह फिल्म आज भी समानांतर सिनेमा की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।

ओम पुरी और नसीरुद्दीन शाह के साथ जुड़ाव

श्याम बेनेगल ने सिनेमा में ओम पुरी और नसीरुद्दीन शाह जैसे अभिनेताओं की प्रतिभा को पहचाना। उनके अनुसार, दोनों अभिनेता अपने-अपने तरीके से श्रेष्ठ थे। नसीरुद्दीन भूमिका की गहराई में जाकर तैयारी करते थे, जबकि ओम पुरी सहजता और स्वाभाविकता से अभिनय करते थे। बेनेगल के लिए दोनों ही कलाकार उनके पसंदीदा रहे।

‘कलयुग’ और अन्य विचारोत्तेजक फिल्में

श्याम बेनेगल की फिल्में, जैसे ‘मंथन’, ‘निशांत’, ‘भूमिका’, ‘मंडी’, और ‘कलयुग’, अपनी अनूठी कहानियों और विचारोत्तेजक विषयों के लिए जानी जाती हैं। ‘कलयुग’ महाभारत के बैकग्राउंड पर आधारित थी और इसे शशि कपूर ने प्रोड्यूस किया। फिल्म में रेखा, राज बब्बर, और अमरीश पुरी जैसे दिग्गज कलाकारों का दमदार अभिनय देखने को मिला।

समानांतर सिनेमा के प्रति उनकी सोच

बेनेगल ने समानांतर सिनेमा के बारे में कहा था, “यह केवल एक शब्द है जिसे किसी ने गढ़ा है। मेरी फिल्में व्यावसायिक सिनेमा से अलग हो सकती हैं, लेकिन मैंने हमेशा मनोरंजन और गहराई का संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है।”

फिल्म निर्माण का संघर्ष और उनका अडिग रवैया

श्याम बेनेगल ने बताया कि उन्होंने कभी अपनी कहानी के साथ समझौता नहीं किया। उनके लिए फिल्में बनाना हमेशा एक चुनौतीपूर्ण और ईमानदार प्रक्रिया थी। हालांकि उनकी फिल्में व्यावसायिक रूप से शाहरुख खान की फिल्मों जितनी सफल नहीं हुईं, लेकिन उन्होंने अपने लिए एक अलग और सम्मानजनक जगह बनाई।

सिनेमा के प्रति अटूट समर्पण

जब उनसे पूछा गया कि इतने वर्षों तक काम करने की प्रेरणा कहां से मिलती है, तो उन्होंने कहा, “मेरी जिंदगी का हर पल सिनेमा को समर्पित है। मैं इसे अपनी मर्जी से करता हूं और जब तक जीवित हूं, मैं यही करता रहूंगा। मैं अपने काम का खुद मालिक हूं।”

श्याम बेनेगल ने सिनेमा को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया और दिखाया कि कला और समाज के बीच कैसे एक पुल बनाया जा सकता है। उनकी विरासत हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।

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