दो साल के निचले स्‍तर पर पहुंची जीडीपी, यह गिरावट अर्थव्‍यवस्‍था के लिए क्‍या मायने रखती है?

GDP में गिरावट: दो साल के निचले स्तर पर पहुंची जीडीपी, इसका अर्थव्‍यवस्‍था पर क्‍या असर है?

29 नवंबर को सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) 5.4 प्रतिशत पर आ गई है, जो कि पिछले दो सालों में सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग सेक्टर के खराब प्रदर्शन के कारण आई है। हालांकि, इसके बावजूद भारत अभी भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना हुआ है। पिछले साल इसी अवधि में जीडीपी में 8.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी, जबकि अप्रैल-जून 2024 की तिमाही में यह 6.7 प्रतिशत रही थी।

जीडीपी में सुस्ती का असर

हालिया आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 की जुलाई-सितंबर तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर घटकर 5.4 प्रतिशत हो गई है। इससे पहले, वित्तीय वर्ष 2022-23 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में यह दर 4.3 प्रतिशत थी। इस दौरान, चीन की जीडीपी ग्रोथ 4.6 प्रतिशत रही। साथ ही, सितंबर तिमाही में उपभोक्ता खर्च को दर्शाने वाला PFSI (Personal Final Consumption Expenditure) घटकर 6 प्रतिशत हो गया, जबकि जून तिमाही में यह 7.4 प्रतिशत था।

GDP क्या है?

ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP) किसी भी देश में एक साल में उत्पन्न होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल मूल्य है। इसे आप समझ सकते हैं जैसे एक छात्र की मार्कशीट। जैसे एक छात्र का प्रदर्शन उसकी मार्कशीट से पता चलता है, वैसे ही जीडीपी से भी देश की आर्थिक स्थिति का आकलन किया जाता है। जीडीपी से यह भी पता चलता है कि किस सेक्टर में सुधार हुआ है और कहां गिरावट आई है।

आम आदमी के लिए जीडीपी क्यों महत्वपूर्ण है?

आम आदमी के लिए जीडीपी इसलिए अहम है क्योंकि यह सरकार के फैसलों का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। जीडीपी में वृद्धि का मतलब है कि देश की आर्थिक गतिविधियां अच्छी चल रही हैं और सरकार की नीतियां प्रभावी साबित हो रही हैं। इसका मतलब यह है कि देश सही दिशा में जा रहा है। वहीं, जीडीपी में गिरावट का मतलब है कि सरकार को अपनी नीतियों पर पुनः ध्यान देने की जरूरत है ताकि आर्थिक वृद्धि को फिर से गति मिल सके।

जब आर्थिक स्थिति बेहतर होती है, तो लोग ज्यादा पैसा खर्च करते हैं और उत्पादन में वृद्धि होती है। लेकिन जीडीपी में गिरावट के दौरान लोग अपने खर्चों को सीमित करने लगते हैं, जिससे सरकार को विभिन्न योजनाओं के तहत लोगों को प्रोत्साहित करना पड़ता है ताकि वे ज्यादा खर्च करें और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिले।

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