क्या रेवड़ी कल्चर से अर्थव्यवस्था को हो रहा है नुकसान? GDP ग्रोथ 6.5 फीसदी तक सीमित हो सकती है!
एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में धीमी विकास दर के पीछे एक प्रमुख कारण पूंजीगत खर्च में कमी है। एसबीआई ने बताया कि इस साल की पहली छमाही में राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही इन्फ्रास्ट्रक्चर या पूंजीगत खर्च के अपने निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाए। इसका सीधा असर विकास दर पर पड़ा, और दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर केवल 5.4 प्रतिशत रही, जो कि पिछले सात तिमाही में सबसे कम है।
एसबीआई का मानना है कि राज्यों की वित्तीय स्थिति पहले से ही दबाव में होने की वजह से, दूसरी छमाही में भी पूंजीगत खर्च बढ़ने की उम्मीद नहीं है। इस वजह से, चालू वित्त वर्ष की कुल विकास दर 6-6.5 प्रतिशत के आसपास सिमट सकती है, जबकि आरबीआई और आर्थिक सर्वेक्षण में इस वर्ष के लिए 7 प्रतिशत की विकास दर का अनुमान था।
विशेषज्ञों के अनुसार, कई राज्य महिलाओं को मुफ्त में नकदी बांटने और अन्य रेवड़ी योजनाओं के तहत भारी खर्च कर रहे हैं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष देश के नौ प्रमुख राज्य एक लाख करोड़ रुपए महिलाओं को मुफ्त में देने वाले हैं। इससे साफ है कि राज्यों का राजस्व का 84 प्रतिशत हिस्सा पेंशन, सैलरी, सब्सिडी, और ब्याज भुगतान जैसे खर्चों में चला जाएगा। इस स्थिति में राज्यों के लिए पूंजीगत खर्च बढ़ाना और भी कठिन हो जाएगा।
एसबीआई की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 17 प्रमुख राज्यों में से केवल पांच राज्यों ने पहली छमाही में पिछले वर्ष की पहली छमाही की तुलना में पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी की है। बाकी राज्य तो अपने पूंजीगत खर्च के 50 प्रतिशत का भी बजट पूरा नहीं कर सके। इसके अलावा, केंद्र सरकार भी 37.3 प्रतिशत ही पूंजीगत खर्च का इस्तेमाल कर पाई है।
इस साल केंद्र सरकार ने पूंजीगत खर्च के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपए का बजट तय किया है, लेकिन छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र जैसे राज्य इस मामले में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए हैं। ऐसे में, पूंजीगत खर्च में कमी के कारण अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ सकता है, और विकास दर में और गिरावट आने की संभावना है।